## नालंदा विश्वविद्यालय 2.0
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बिहार के नालंदा विश्वविद्यालय ने एक नये दौर में प्रवेश किया है, इसे नालंदा का पुनर्जन्म या नालंदा 2.0 भी कहा जा है।
ये 21वीं सदी में ज्ञान की उस परंपरा को आगे बढ़ाने की कोशिश है, जो 5वीं शताब्दी से ही भारत का गौरव रही है। इस मौके पर नालंदा के बारे में जानकारियों का फ्लैशबैक पोस्ट करना चाहता हूँ...ताकि देशव्यापी विमर्श में इसे स्थान मिल सके।
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इस पोस्ट के 5 हिस्से हैं
1. ==नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना और वास्तुकला==
2. ==बख्तियार खिलजी ने नालंदा वि.वि. पर आक्रमण क्यों किया ?==
3. ==भारतीय विद्वान जिन्होंने नालंदा में ज्ञान अर्जित किया==
4. ==चीन से आए छात्रों का नालंदा से गहरा कनेक्शन==
5. ==चीन से आए छात्रों ने अपने भारतीय नाम क्यों रखे ?==
इसे पढ़ने के लिए थोड़ा धैर्य चाहिए होगा, परंतु जब पूरा पढ़ लेंगे तो सार्थक लगेगा
##### नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना और वास्तुकला
1. नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में गुप्त सम्राट कुमारगुप्त प्रथम ने की थी।
2. हर्षवर्धन और पाल शासकों के समय में इसका और भी विस्तार हुआ और ये दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गया।
3. इसके विशाल आकार और भव्यता का विवरण चीनी यात्री ह्वेनसांग और युआन च्वांग के यात्रा विवरण में मिलता है। नालंदा विश्वविद्यालय का परिसर लगभग 14 हेक्टेयर यानी क़रीब 35 एकड़ में फैला हुआ था। इसमें कई शैक्षणिक और आवासीय भवन, पुस्तकालय, मंदिर और विहार थे। इसकी वास्तुकला में बौद्ध शैली के तत्व देखे जा सकते थे।
4. नालंदा में 10 बड़े विहार थे, जो छात्रों और भिक्षुओं के आवास के लिए बने थे। ये विहार चारों ओर से बंद होते थे और उनके अंदर अध्ययन कक्ष, ध्यान स्थल और निवास स्थान होते थे।
5. परिसर में 10 बड़े मंदिर थे, जहां बौद्ध धर्म के धार्मिक अनुष्ठान होते थे और शिक्षाएं दी जाती थीं।
6. नालंदा विश्वविद्यालय का पुस्तकालय 'धर्मगंज' के नाम से जाना जाता था और इसमें तीन प्रमुख पुस्तकालय भवन थे: रत्नसागर, रत्नोदधि, और रत्नरंजक।
7. पुस्तकालय में लाखों पांडुलिपियाँ और ग्रंथ थे, जिनसे अलग अलग विषयों पर गहरी जानकारियां मिलती थीं
8. नालंदा विश्वविद्यालय में लगभग 10,000 छात्र और 2,000 शिक्षक होते थे।
9. ये विश्वविद्यालय केवल भारतीय छात्रों के लिए नहीं था, यहाँ कई देशों से छात्र अध्ययन करने आते थे, विशेष रूप से चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका, और दक्षिण पूर्व एशिया के अन्य भागों से। जिससे विश्वविद्यालय का एक अंतरराष्ट्रीय चरित्र बनता था।
10. यहाँ धर्म, तर्कशास्त्र, खगोलशास्त्र, गणित, और आयुर्वेद सहित कई विषयों की शिक्षा दी जाती थी।
11. शिक्षकों में बौद्ध भिक्षु, विद्वान, और विशेषज्ञ शामिल थे, जो विभिन्न विषयों को पढ़ाते थे और रिसर्च करते थे।
> ज्ञान के ऐसे केंद्र हमेशा ही आक्रांताओं को चुभते हैं... इसलिए जब उन्हें अपने साम्राज्य का विस्तार करना होता है तो सबसे पहले ज्ञान के इन केंद्रों पर ही हमला होता है। बख्तियार ख़िलजी ने यही किया।
##### बख्तियार खिलजी ने नालंदा वि.वि. पर आक्रमण क्यों किया ?
1. बख्तियार खिलजी एक तुर्क सेनापति था, जो दिल्ली सल्तनत के गुलाम वंश के समय बिहार और बंगाल में अपने सैन्य अभियानों के लिए जाना जाता था। खिलजी का उद्देश्य उत्तर भारत में अपने क्षेत्र का विस्तार और इस्लामी शासन स्थापित करना था।
2. नालंदा विश्वविद्यालय बौद्ध धर्म का प्रमुख केंद्र और एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक और धार्मिक संस्थान था। इसलिए ये बख्तियार खिलजी के टारगेट पर था। खिलजी की सेना ने नालंदा विश्वविद्यालय पर हमला करके भवनों को ध्वस्त कर दिया और इसके छात्रों और शिक्षकों को मार डाला।
3. सबसे दुखद ये रहा कि इन लोगों ने नालंदा विश्वविद्यालय के विशाल पुस्तकालय को जलाया। ये पुस्तकालय प्राचीन भारत के ज्ञान और विज्ञान का एक महा भंडार था, जिसमें लाखों पांडुलिपियाँ और ग्रंथ थे।
4. ऐसा कहा जाता है कि नालंदा के पुस्तकालय में इतनी पांडुलिपियाँ थीं कि वे कई महीनों तक जलती रहीं। ऐसा ज़िक्र भी मिलता है कि ये आग तीन महीने तक लगी रही थी।
5. इस आग में बौद्ध धर्म, विज्ञान, गणित, चिकित्सा, और अन्य विषयों की महत्वपूर्ण पांडुलिपियाँ और ग्रंथ जलकर राख हो गए।
6. नालंदा विश्वविद्यालय का विनाश भारतीय उपमहाद्वीप में ज्ञान की संस्कृति, बौद्ध धर्म और शिक्षा पर एक भारी आघात था। इसके साथ ही, प्राचीन भारतीय ज्ञान और विज्ञान का एक बड़ा हिस्सा लुप्त हो गया।
##### भारतीय विद्वान जिन्होंने नालंदा में ज्ञान अर्जित किया
1. आर्यभट्ट प्राचीन भारत के एक महान गणितज्ञ और खगोलशास्त्री थे। उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया और वहीं से उन्होंने “आर्यभट्टीय” नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें गणित के कई सूत्र हैं और ग्रहों की गति के बारे में बताया गया है।
2. धर्मकीर्ति एक महान बौद्ध दार्शनिक और तर्कशास्त्री थे, जिन्होंने नालंदा में शिक्षा प्राप्त की थी। उन्होंने बौद्ध तर्कशास्त्र और दर्शन पर कई महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की, जिनमें से एक ग्रंथ है “प्रमाणवर्तिक”
3. नागार्जुन एक प्रमुख बौद्ध विद्वान और दार्शनिक थे, जिन्हें नालंदा विश्वविद्यालय के महान आचार्यों में गिना जाता है। उन्होंने मध्यमक कारिका नामक ग्रंथ की रचना की, जिसमें उन्होंने शून्यवाद के सिद्धांतों का विस्तार किया।
4. शांतरक्षित एक बौद्ध विद्वान और नालंदा के आचार्य थे। उन्होंने तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वहाँ के पहले मठ का निर्माण करवाया। शांतरक्षित ने बौद्ध धर्म के विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण ग्रंथों की रचना की
##### चीन से आए छात्रों का नालंदा से गहरा कनेक्शन
वहां चीन से सबसे ज्यादा छात्र पढ़ने के लिए आते थे.. और ये छात्र, भारत के शिक्षकों से जीवन भर प्रभावित रहते थे। पढ़ाई करके लौट जाने के बाद भी वो भारत के शिक्षकों को चिट्ठियां लिखते थे और उपहार भी भेजते थे। इन छात्रों में चीन के प्रसिद्ध यात्री और विद्वान ह्वेन सांग, फाह्यान और इत्सिंग भी शामिल थे।
ह्वेनसांग चीन के एक महान बौद्ध भिक्षु और यात्री थे, जिन्होंने 7वीं शताब्दी में नालंदा में कानून की पढ़ाई की। वो नालंदा के आचार्य शीलभद्र के शिष्य थे । ह्वेनसांग ने अपने अनुभवों और ज्ञान को “द ग्रेट टैंग रिकॉर्ड्स ऑन द वेस्टर्न रीजन” में दर्ज किया, जिसमें उन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय की शिक्षा प्रणाली, स्थापत्य और वातावरण के बारे में विस्तार से बताया है।
चीन के छात्र इत्सिंग को Chinese-संस्कृत शब्दकोश तैयार करने का श्रेय दिया जाता है ।
इसके अलावा युआन च्वांग भी एक प्रसिद्ध बौद्ध भिक्षु और विद्वान थे, उन्होंने नालंदा में दस वर्षों से अधिक समय बिताया।उन्होंने एक पुस्तक “द एकाउंट्स ऑफ द वेस्टर्न रीजंस” लिखी, जिसमें उन्होंने नालंदा के माहौल और विद्वानों के बीच होने वाली चर्चाओं का विवरण दिया।
##### चीन से आए छात्रों ने अपने भारतीय नाम क्यों रखे ?
चीन के छात्र, भारतीय संस्कृति से इतने ज़्यादा प्रभावित थे कि उन्होंने अपने चाइनीज़ नाम बदलकर भारतीय नाम रख लिए थे।
1. ह्वेन सांग का भारतीय नाम मोक्षदेव था
2. युआन च्वांग का श्रमण यश
3. फाह्यान का भारतीय नाम धर्मसार
4. इत्सिंग का ज्ञानदेव
5. ह्वेन-ची का नाम प्रकाशमति
6. सिनचिक का नाम चरित्रवर्मा
7. चिहिंग नामक छात्र ने अपना नाम प्रज्ञादेव रखा था
नालंदा में अध्ययन करने वाले इन विदेशी शिष्यों ने अपने-अपने देशों में वापस जाकर नालंदा के ज्ञान और शिक्षा का प्रसार किया। कई विद्वानों का मानना है कि चीन के विद्यार्थियों का बहुत सारा शोध कार्य बख्तियार खिलजी के हमले में खत्म हो गया था।
14वीं शताब्दी के इतिहासकार जियाउद्दीन बरनी ने भी नालंदा पर हुए हमले का जिक्र अपनी किताब में किया था। जियाउद्दीन बरनी ने लिखा...
> नालंदा विश्वविद्लाय भारत और चीन के बीच ज्ञान का एक सेतु था । और इस सेतु के टूट जाने से भारत और चीन, एक दूसरे से दूर होते चले गए।
एक बार फिर नालंदा को ज्ञान का केंद्र बनाने का महाप्रयास शुरू हुआ है। इसमें समय लगेगा, मेरी शुभकामनाएँ
2024-06-19