## सलीम-जावेद जैसे लेखकों की तरह इंसान-AI की जोड़ी बनेगी ?
AI लिख तो रहा है, पर जिएगा कौन?
भाषा की आत्मा अनुभव में है, Algorithm में नहीं।
#Doorbeen
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> AI से उधार लिए हुए शब्दों के दौर में
> भाषा की गारंटी नहीं…
> जिसे भी पढ़ना
> बार बार पढ़ना
>
> मशीन लर्निंग पर नियंत्रण करने वाले कम,
> मशीन लर्निंग के गुलाम ज़्यादा मिलेंगे
>
> मौलिकता स्वयं अपना परिचय देती है
> और उधार के शब्द रायते की तरह फैल जाते हैं
>
> सच्चे शब्द वही हैं
> जो किसी लेखक की साँसों से जन्म लेते हैं,
> किसी एल्गोरिदम की ठंडी फ़ाइल से नहीं।
>
> भाषा तभी जीवित रहती है,
> जब वह मशीन की नकल नहीं,
> मनुष्य की आत्मा का विस्तार बन सके।
#### उधार के शब्दों का खोखला संसार
इन दिनों माहौल में AI घुला हुआ है। शब्द अब सिर्फ़ लिखे नहीं जाते, वे जेनरेट भी होते हैं। लेकिन सवाल है भुजिया के पैकेट की तरह तैयार शब्दों में आत्मा कितनी है, उनमें कितनी मौलिकता है?
AI जिनकी भी पहुंच में है.. वे उसका इस्तेमाल करने की जुगत में हैं, AI की लेखन क्षमता से चकित होकर लोग इससे फायदा उठाने के तरीके ढूंढ रहे हैं। किसी नई तकनीक का स्वागत करना, उसे अपनी दिनचर्या में शामिल करना बुरा भी नहीं है.. लेकिन एक बात जो सब भूल जाते हैं.. वो ये है कि AI इस तरह लिखता है जैसे वो सब कुछ जानता है, लेकिन जानना ही अनुभव नहीं है। अनुभूति अलग तरीके से खुद को प्रकट करती है। AI की भाषा में मुझे अनुभूति की कमी लगी। ठीक वैसे ही जैसे एआई द्वारा किए गये वॉयसओवर में जो आवाज़ होती है वो मशीनी लगती है। हूबहू किसी सेलिब्रिटी की नकल करनी हो तो बात अलग है। कई गाने आजकल दिवंगत सेलिब्रिटीज़ की आवाज़ में तैयार किए जा रहे हैं। लता मंगेशकर, मोहम्मद रफ़ी, किशोर कुमार के एआई गीत सुन चुका हूं, और हमेशा ही लगा है कि AI ने इन महान गायकों के पैटर्न को कॉपी तो अच्छे से किया, लेकिन क्रियेट नहीं किया।
#### औसत लेखन का संकट: AI Slop
वैसे AI ने लेखन को आसान बना दिया है। आज जिसके पास इंटरनेट एक्सेस है वो लेखक है.. कुछ सेकंड में हज़ार शब्द तैयार हो जाते हैं। हर दिन करोड़ों शब्द AI टूल्स से लिखे जा रहे हैं। कहीं न कहीं पेश किए जा रहे हैं।
लेकिन जब लोग खुद से ज़्यादा भरोसा AI पर करने लगते हैं, तो उनकी खुद की रचनात्मकता और आलोचनात्मक सोच कमज़ोर पड़ने लगती है। AI लेखन को गहराई से देखेंगे तो एक खास पैटर्न आपको दिखेगा.. और अगर कोई ज़्यादा सवाल पूछ ले या बहस कर ले, तो दिमाग घूम जाता है AI का।
2022-23 में एक शब्द गढ़ा गया — AI Slop... इसका मतलब है —> AI द्वारा रची गई वो सामग्री जो सतह पर चमकदार है, पर असल में उसमें गुणवत्ता और गहराई नहीं होती। यानी AI जेनरेटिड कूड़े का पहाड़। जो दर्जा Spam शब्द का है.. वही दर्जा AI Slop का होने जा रहा है। AI Slop के कारण इंटरनेट पर गलत सूचना और सतही कंटेंट की बाढ़ आ गई है, जिससे लोगों के लिए विश्वसनीय और मौलिक जानकारी ढूंढना मुश्किल हो गया है।
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#### औसत को AI अपना भोजन बना लेगा
AI नकल तो करता है लेकिन कंटेंट पर उतनी अक्ल नहीं लगाता जितनी इंसान लगाते हैं.. इसलिए AI का काम औसत दर्जे का है.. और शायद इसीलिए इस दौर का सच ये है कि एआई औसत दर्जे का काम करने वालों को Replace कर देगा, खासतौर पर मीडिया और क्रियेटिव फील्ड्स में। औसत से ऊपर वाले एआई को पाल लेंगे, उसे अपना सेवक बना लेंगे।
> एक लाइन में कहूं तो
> “औसत को AI खा जाएगा, पर मौलिकता हमेशा जीवित रहेगी"
हालांकि इस विषय का एक दूसरा पहलू भी है
#### AI के साथ कोलैबोरेशन यानी टीमवर्क का मॉडल
1. AI = सहायक, इंसान = निर्देशक
- AI भारी-भरकम काम (जैसे - डेटा छाँटना, Notes बनाना, रिसर्च) जल्दी कर सकता है।
- इंसान गहराई, दृष्टिकोण और संवेदना जोड़कर इसे असली अर्थ दे सकता है।
2. Efficiency + Creativity
- टीम की तरह सोचिए: AI समय बचाता है, ताकि लेखक गहराई से सोच सके।
- ये संयोजन “तेज़ी + मौलिकता” का मेल हो सकता है।
3. AI से , इंसान से Insights
- AI brainstorming या rough drafts दे सकता है।
- लेकिन अंतिम आवाज़ इंसान की ही होती है, क्योंकि अनुभव वही लाता है।
4. भाषा का विस्तार
- AI अनुवाद, Summary में मदद कर सकता है।
- इंसान भाषा की आत्मा और मौलिकता को बचा सकता है।
5. औसत तुम करो, मौलिक मैं करूं
- AI औसत दर्जे का काम सँभाले, और इंसान रचनात्मकता पर ध्यान दे।
>आगे अलग अलग भाषाओं में, कहने के तरीके में एक बड़ा बदलाव आना है। देखना ये होगा कि भविष्य की भाषा इंसान और मशीन के बीच प्रतिस्पर्धा से निखरेगी या फिर AI औसत काम सँभालेगा और इंसान अपनी मौलिकता, संवेदना और दृष्टि से भाषा और संस्कृति को जीवंत बनाएगा। मुकाबला या टीमवर्क इन्हीं दो शब्दों के बीच इस कशमकश का जवाब है।
2025-08-27
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