## GIGO | कूड़ा in.. कूड़ा out ! #Poetry >[!quote] मूल विचार कंप्यूटर साइंस में एक कॉन्सेप्ट है, जिसे GIGO कहते हैं.. यानी Garbage In, Garbage Out.. इसका अर्थ है कि निरर्थक / हास्यास्पद / अनर्गल डेटा इनपुट से.. निरर्थक / हास्यास्पद / अनर्गल आउटपुट निकलता है.. यानी कूड़ा डालेंगे तो.. कूड़ा ही बाहर आएगा। दूसरे एंगल से देखें तो कूड़ा पारदर्शी भी है.. उसमें गवाही होती है व्यक्तित्व के छिलकों की.. हर व्यक्ति का, हर घर का, हर व्यवस्था का कूड़ा अलग तरह का होता है.. बहुत सलीके से चलने वाली व्यवस्था के अंदर की विसंगतियों को, कूड़े से जाना जा सकता है। शायद इसीलिए.. सलाहकार, कोच, जासूस, नेता, पत्रकार.. दूसरों के कूड़े की तलाश में रहते हैं.. अपराध कथाओं के जासूसी किरदार हमेशा शुरुआत में सीन ऑफ क्राइम पर मौजूद कूड़े का विश्लेषण करते हैं.. कविता में इसी दृष्टिकोण का विस्तार है   > किसी घर का कूड़ा बता देता है… > रहने वालों के दिलो-दिमाग में क्या पक रहा है.. > …उसके पकने से पहले क्या छिला था > क्या कटा था.. महीन महीन.. > क्या उबालकर छाना गया.. और चुपचाप फेंका गया.. > > बस थोड़ी ही देर पहले > वो क्या था जो आँच में थोड़ा जल गया.. > परंतु बहुत सफ़ाई से छिपा ली गई.. दुर्गंध उसकी… > > जो बेकार समझकर फेंका जा रहा है.. > ठिकाने लगाया जा रहा है.. सत्य की तरह.. > उसे ध्यान से देखना.. > कूड़े में इंसानों के छिलके मिलते हैं   ![[Pub-gigo.webp|400]]   ###### Expl.ai.ner note This poem draws inspiration from the computer science concept of GIGO, which says that nonsensical input yields nonsensical output. The poem extends this idea to explore how the "garbage" or waste of a household can reveal the inner workings and hidden truths of its inhabitants. It suggests that waste is transparent, bearing witness to the "peels of personality" and the inconsistencies within seemingly orderly systems. 2022-01-02