## आप दुख गिनते हैं या सुख ?
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Fyodor Dostoevsky ने सुखों की गिनती को ज़रूरी बताते हुए लिखा है कि सुख गिनेंगे तो एहसास होगा कि दुखों को संतुलित करने के लिए सुखों की डिलीवरी पर्याप्त मात्रा में होती है।
“Man is fond of counting his troubles, but he does not count his joys. If he counted them up as he ought to, he would see that every lot has enough happiness provided for it”
सुखों की गिनती, संसार के व्यापार में आपको हमेशा मुनाफ़े में रखेगी।
साहिर लुधियानवी सुख-दुख के बीच समभाव वाली सोच को कुछ गीतों के रूप में लिखकर गए हैं
फ़िल्म थी *हम दोनों* (1961) और गीत था
>“जहाँ में ऐसा कौन है, जिसको ग़म मिला नहीं”

इसके अलावा इसी फ़िल्म में एक और गीत था
>मैं ज़िंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फ़िक्र को धुएँ में उड़ाता चला गया...
ग़म और ख़ुशी में फ़र्क़ न महसूस हो जहाँ, मैं दिल को उस मक़ाम पे लाता चला गया
2024-12-17