## राजतरंगिणी से कश्मीर वाले कुछ बिंदु #LearningLounge #books कल्हण की राजतरंगिणी का कश्मीर की ऐतिहासिकता के संदर्भ में एक विशेष स्थान प्राप्त है। इस पुस्तक से भारतीय सभ्यता के सबसे पुराने क्षेत्रों में से एक, कश्मीर की झलक मिलती है। राजतरंगिणी 12 वीं शताब्दी में लिखी गई थी। राजतरंगिणी में आठ खंड हैं। पहले तीन खंड प्राचीन कश्मीर के इतिहास को कवर करते हैं, जिसकी शुरुआत इसके निर्माण की पौराणिक कहानियों से होती है। जिनसे ये संकेत मिलता है कि कश्मीर घाटी का निर्माण एक झील के सूखने के बाद हुआ था, इस तथ्य का भूगोल के विशेषज्ञों ने भी उल्लेख किया है। पुस्तक की शुरुआत राजा गोनाडा प्रथम जिन्हें जरासंध का मित्र बताया गया है उनके राज्याभिषेक की एक पौराणिक तिथि से होती है जो महाभारत में युधिष्ठिर के राज्यारोहण के समकालीन है। कल्हण ने राजतरंगिणी में ये भी लिखा है कि श्रीनगर की नींव मौर्य सम्राट अशोक ने रखी थी। उसने कश्मीर की यात्रा 245 ई. पू. में की थी। इस तथ्य को देखते हुए श्रीनगर कम से कम 2200 वर्ष पुराना नगर है। अशोक का बसाया हुआ नगर वर्तमान श्रीनगर से करीब 5 किलोमीटर दूर उत्तर दिशा में बसा हुआ था। संस्कृत भाषा में श्री का मतलब होता है देवी लक्ष्मी । इस शब्द को सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है। यानी श्रीनगर का मतलब है... देवी लक्ष्मी का नगर या सौभाग्य का नगर। कल्हण ने कश्मीर के पुराने इतिहास से जुड़ी 11 कृतियों का निरीक्षण अपने समय में किया था और कई महत्वपूर्ण बातें उजागर की थीं। कल्हण ने नीलमत पुराण से भी कई संदर्भ लिए थे.. नीलमत पुराण कश्मीर के भूगोल, संस्कृति और इतिहास पर एक प्राचीन ग्रंथ है। नीलमत पुराण की शुरुआत ऋषि वैशम्पायन और राजा जनमेजय के बीच एक संवाद से होती है इसमें महाभारत युद्ध में कश्मीर के राजाओं की अनुपस्थिति के बारे में संवाद है कल्हण ने कश्मीर में स्तूपों और विहारों के निर्माण के लिए अशोक से लेकर राजा मेघवाहन तक की प्रशंसा की है। और लिखा है कि सदियों पहले बौद्ध और शैव यानी शिव के उपासक कश्मीर में शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में थे। उन्होंने आधुनिक दौर के भारतीय उपमहाद्वीप, अफगानिस्तान, ईरान, इराक और तुर्किए, में शैव पूजा के स्थानों का उल्लेख किया है। 2023-08-17