## कुछ भी नहीं है सदा के लिए #Faces ![[Pub-nothing-is-forever.webp|400]] रोहित सरदाना, मेरा सखा.. मेरा मित्र.. मेरा सहचर उसके लिए जो महसूस कर रहा हूं वो कभी किसी के लिए महसूस नहीं किया.. मैं 21 सितंबर को पैदा हुआ.. वो 22 सितंबर को.. हम दोनों के जन्मदिन एक दूसरी पर पीठ टिकाकर बैठे हैं.. सालों साल हम साथ जन्मदिन मनाते रहे.. केक काटते रहे.. एक दूसरे का मुंह मीठा करते रहे। दफ़्तर कोई सा हो, केक साथ कटता रहा। आज भी रात के इस पहर में। हमारी पीठ लगी हुई है एक दूसरे से.. आराम से बिना एक दूसरे को देखे हुए.. बातें किए जा रहे हैं.. किसी पिंड की.. शरीर की… स्वप्न की… ज़िंदगी और मौत में बस इतना ही फासला है..  वो मुझसे उम्र में बड़ा था.. लिहाज़ा हम दोनों के एक दूसरे पर नैसर्गिक अधिकार थे.. मेरी थाली में उसका.. और उसकी थाली में मेरा आधा हिस्सा रहा.. मेरे घर की गर्म चाय.. उसे पिलाकर उसे अपना शो करने भेजता था.. हर रोज़… एक दूसरे की मौजूदगी हमें शांति देती थी.. आमने सामने बैठकर खाना खा रहे हैं.. इधर उधर की बातें कर रहे हैं फिर अचानक शांत.. एक दूसरे के आसपास मौजूद होने में ही मस्त… जब रोहित नहीं आता था.. तो उस दिन मेरा लंच घर वापस जाता था। बाद में इसे लगातार होते देख पत्नी ने मेन्यू को अडजस्ट करके इतना कर दिया कि मैं जब भूख से मरने लगूं तो फॉयल में लिपटी हुई रसद खा लूं। और जीवित घर वापस आ जाऊं। दफ़्तर में रोहित के बिना निवाले… ताला लगे हुए किसी अंधेरे घर जैसे लगते थे.. शायद लंबे समय तक लगते रहेंगे। हम दुनिया के किसी कोने में हों.. हर छोटी छोटी बात पर.. एक दूसरे को याद ज़रूर करते थे.. कई बार.. अपने निवाले की फोटो खींच कर एक दूसरे को भेजते थे.. साथ घूमने जाते थे.. साथ पार्टी करते थे.. रोज़ एक दूसरे के साथ बैठकर भविष्य को बुनते थे.. कोरोना पॉज़िटिव होने के बाद वो नहीं आया... तो मैं भी दफ्तर में खाना नहीं खा पाया।  उसके शरीर के जाने के बाद.. जो पहला निवाला मेरे शरीर में गया.. उसमें खुद रोहित की सांत्वना थी.. मानो.. उसने ही मेरे मुंह में डाल दिया हो.. और कहे कि अब खा ले.. खाना वेस्ट नहीं करते… तेरे लिए स्पेशल बनवाकर लाया हूं.. कोई बात नहीं.. मैं दूर नहीं हूं त्रिपाठी.. मुझे तुझसे कोई अलग नहीं कर सकता। लोग रोहित सरदाना को पहचानते हैं.. मैं रोहित को जानता हूं… और जिस रोहित को मैं जानता हूं.. उससे आपका परिचय एक बार में करवाना मुश्किल है.. उसे समर्पित एक पूरा डिजिटल मेमॉयर धीरे धीरे लिखूंगा.. पूरी दुनिया को रोहित से मिलवाऊंगा.. एक सहचर और लेखक होने के नाते ये तो मेरे बस में है.. जिन लोगों ने रोहित को समग्रता में जाना नहीं... उनका कोई अधिकार नहीं है कि वो उसका मूल्यांकन करें। रोहित के शरीर की विदाई पर आहत हूं... मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ गया है, पैनिक अटैक आ रहे हैं.. अचानक हाथों में झनझनाहट होने लगती है.. पैर कांपने लगते हैं.. सुन्न हो जाता हूं.. आंसू बहने लगते हैं.. और सांस लेना भी भारी हो जाता है। लोकव्यवहार में इस दर्द को मेरा स्वार्थ भी कहा जा सकता है.. लेकिन सच ये है कि मर्दों को दर्द होता है... और मुझे दर्द की दीवार के पीछे खुद को चुन देना नहीं आता।  रोहित मुझे ऐसी हालत में देखता तो गाड़ी स्टार्ट करके आ जाता.. और कहता साले पागल हो गया है क्या तू... उसकी इस बात पर रियेक्ट कर रहा हूं.. ठीक होने की पूरी कोशिश कर रहा हूं.. ताकि प्रमिला, मिठ्ठू, काशी के लिए खड़ा हो सकूं...  उस परिवार के लिए खड़ा हो सकूं.. जिसमें रोहित पर जान छिड़कने वाले दोस्त ही दोस्त हैं। मैं यही मानना चाहता हूं कि रोहित है यहीं कहीं.. किसी राग में, किसी पंजाबी गज़ल में.. किसी परफ्यूम की खुशबू में… किसी नन्हीं उगती हुई पत्ती की शक्ल में.. पके हुए आम में जो उसे बहुत पसंद हैं.. मेरे घुंघराले बालों में फंस जाने वाले किसी हवा के झोंके में.. जिसे हमने अगल बगल खड़े होकर महसूस किया। कोई वायरस मेरे लिए रोहित के अस्तित्व को मिटा नहीं सकता… मैं कभी उसके निर्जीव शरीर को नहीं देखना चाहता था.. मेरी हिम्मत नहीं है.. अंकल और आंटी जैसी.. प्रमिला जैसी… जीतू जैसी.. पारितोष जैसी.… आप इसे मेरी कमज़ोरी या भावुकता कुछ भी कह सकते हैं। मेरे दुखों में मेरा रोहित है… मैं उसके अस्तित्व की वर्षा में पूरी शिद्दत से भीग लेना चाहता हूं.. सारे छाते फेंक कर.. अपनी महसूस करने और सहन करने की शक्ति को विस्तार दे रहा हूं.. सीख रहा हूँ.. कैसे कोई मैसेज आखिरी मैसेज हो जाता है.. कैसे कोई तस्वीर आखिरी हो जाती है.. कोई ट्रिप, कोई चाय आखिरी हो जाती है.. कैसे कोई कॉल आखिरी हो जाता है.. मेरी गाड़ी के 7 स्पीकर्स पर उसकी आवाज़ गूंज रही है… त्रिपाठी आजा जल्दी.. फिर लंच करते हैं….. आज... तेरे लिए… क्रमश: वो सिद्धार्थ.. जिसमें रोहित की मित्रता जी रही है 2021-05-05