## खुली आँखों वाला न्याय #NotesOnNews **भारत में न्याय की देवी ने आंखों वाली पट्टी उतार दी है** **परंतु पट्टी वाला ये कॉन्सेप्ट आया कहां से था?** ![[Pub-lady-justice.webp|400]] आपने न्याय की देवी को हमेशा आंखों पर पट्टी बांधे देखा होगा.. और अनेक फिल्मों में बार बार यही सुना होगा कि कानून अंधा होता है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट की लाइब्रेरी से बिना पट्टी वाली न्याय की देवी का वीडियो आया है CJI चंद्रचूड़ का मानना है कि देश को अब इस प्रतीक से आगे निकलना चाहिए। कानून कभी अंधा नहीं हो सकता, वो सबको समान रूप से देखता है। हालाँकि मुख्य न्यायाधीश की ये बात काफ़ी फिल्मी नज़र आती है ##### पहले की मूर्ति कैसी होती थी ? - दाएं हाथ में तराजू होता था, जबकि बाएं हाथ में तलवार - ==तराजू : न्याय की निष्पक्षता और संतुलन का प्रतीक है।== इसका अर्थ है कि सभी पक्षों को समान रूप से सुना और तौला जाना चाहिए, ताकि निष्पक्ष निर्णय लिया जा सके - ==तलवार.. न्याय की शक्ति और अंतिम निर्णय का प्रतीक है।== ये बताता है कि एक बार जब सभी तथ्यों और साक्ष्यों को तौला जाता है, तो न्याय को दृढ़ता और निष्पक्षता के साथ लागू किया जाना चाहिए। लेकिन अब नई मूर्ति में तलवार की जगह संविधान देकर इसे बदलने की कोशिश की गई है। वैसे न्याय की देवी की छवि और प्रतीकवाद का एक लंबा और समृद्ध इतिहास है, जो प्राचीन सभ्यताओं से लेकर आधुनिक समय तक फैला हुआ है - न्याय की देवी का ==सबसे पुराना रूप मिस्र की देवी माट (Ma'at) में देखा जा सकता है==, जो सत्य, न्याय और ब्रह्मांडीय व्यवस्था की देवी थीं। माट के प्रतीक के रूप में पंख का उपयोग किया जाता था, जो सत्य और न्याय का प्रतिनिधित्व करता था। - रोमन सभ्यता में, ==न्याय की देवी को Justitia के रूप में जाना जाता था। जिनकी छवि में तराजू, तलवार और आंखों पर पट्टी शामिल थी।== ये प्रतीकवाद आज भी न्याय की देवी की आधुनिक छवि में देखा जाता है। - आंखों पर पट्टी का प्रतीक खासतौर पर 15वीं शताब्दी के अंत और 16वीं शताब्दी की शुरुआत में लोकप्रिय हुआ। ये न्याय की निष्पक्षता और तटस्थता का प्रतीक है, ये दर्शाता है कि न्याय बिना किसी पूर्वाग्रह के किया जाना चाहिए। वैसे तो न्याय की देवी की छवि दुनिया भर में न्यायालयों और कानूनी संस्थानों में एक सार्वभौमिक प्रतीक के रूप में इस्तेमाल की जाती है, लेकिन भारत में अब नये सिरे से बदलाव हो रहा है। मूर्ति की आंखों पर बंधी पट्टी खुल गई है.. दावा है कि कानून अब अंधा नहीं है.. हालांकि प्रतिमा सिर्फ एक प्रतीक होती है... कानून अंधा साबित न हो.. इसके लिए ज़मीनी स्तर पर भी हमारी न्याय व्यवस्था को परीक्षा देनी होगी। अब भी करोड़ों केस अदालतों में तारीख़ पर तारीख़ वाले जाम में फँसे हैं। 2024-10-16