## मेले के झूले जैसी बातें #Faces वो आज़ाद भारत से तीन साल छोटे हैं, देश जितने ही समृद्ध भी हैं और जटिल भी, देश की तरह उड़ान में भी हैं और जड़ से बंधे भी, जीवन की रेलिंग पकड़कर, गाना गाते हुए उम्र की सीढ़ियाँ चढ़ रहे हैं.. पापा जी.. बिलकुल देश की तरह… वैसे भी पुत्र के लिए पिता द्वारा बोया गया संसार किसी देश से कम है क्या ? अपने मन की कहूँ तो उनके और मेरे बीच में रोशनी की लकीरों का, दैनिक चर्चाओं का, और आधी-आधी चाय जैसी सहमति-असहमति का रिश्ता है। गले से गुज़रती चाय की मुरकियां... हमने महसूस की हैं.. पापा जी के साथ जीवन को घूँट घूँट साधने का सौभाग्य मिला है। मेले के झूले जैसी बातें...और अचानक नीचे आते हुए भी किसी उत्सव में झम्म से गिरने और डूबने-निकलने का रोमांच.. ये हमारा हासिल है ये लिखते लिखते कौंधा कि 9 अक्टूबर के दिन ही टेलीफोन से दुनिया की पहली दो-तरफ़ा कॉल की गई थी, ये दिन परस्पर संवाद और पापा जी दोनों से जुड़ा है। ![[Pub-Dad-Collage.webp|400]] वे कवि, लेखक, पत्रकार, राजनीतिक विश्लेषक, ज्योतिष के प्रकांड विद्वान, होम्योपैथी के जानकार हैं (घर में अनौपचारिक दवाखाना है)… पाक कला विशेषज्ञ (रायता और सीताफल बेजोड़ बनाते हैं), कील गाड़ने और पौधे उगाने में एक्सपर्ट, जवां दिल ड्राइवर, कचौड़ी और कलाकंद के शौकीन हैं। पीड़ाओं और उत्सवों के गायक हैं, मुझे उनकी अधिसंख्य रचनाएँ कंठस्थ हैं… और उनका कंठ…ओहो… इस उम्र में भी कमाल है…. जीवन की ओर से उनके हिस्से में जब जब आग आई उन्होंने उसे शब्दों में ढालकर गीत लिखे मैंने उन्हें एक सायादार पेड़ की तरह देखा है… जिसने आँधी में लगातार यात्रा की.. और जिसकी छाँव में न जाने कितने लोग बड़े हो गए। जीवन भर मेरे पिता ने ज्ञान और पुस्तकें अर्जित की हैं.. और इस दौरान समय निकालकर अपनी ये आदत उन्होंने मुझमें प्रत्यारोपित कर दी। उनकी ही बदौलत आज मैं एक पुस्तकालय जैसी जगह में रहता हूँ.. वहीं चाय पीता-लिखता-पढ़ता-पेंट करता हूँ.. सिनेमा और संगीत में डुबकी लगाता हूँ.. और पिता कौतुक से देखते रहते हैं.. खुश होते हैं मुझमें अपनी अभिव्यक्ति देखकर। उनकी ये नज़र मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान है। एक प्रसंग का ज़िक्र करना चाहता हूँ, जो मेरे लिए अनमोल है... शुरुआती दो किताबें छपने के काफी अरसे बाद सितंबर 2005 में उनका एक ग़ज़ल संग्रह प्रकाशित हुआ। उसकी प्रति जब मेरे हाथ में आई तो शुरुआत में ही पन्ने पलटते हुए दो लाइनें पढ़कर मेरी आँखों में चमक आ गई.. और वो चमक आज भी है। वहां समर्पण के पन्ने पर लिखा था... सिद्धार्थ को उम्मीद की रोशनी की एक चमकीली शहतीर जो मुझ तक आकर एक पुल बनाती है 🔻🔻 🔻🔻 ![[Pub-dad-samarpan-book.webp|400]] इन पंक्तियों की चमक मेरी आँखों में आज भी है.. हमेशा रहेगी.. पुरस्कार, पैसे, कामयाबी, नाकामी.. किराये के मकान.. अपना घर.. आते जाते रहेंगे.. हम यूँ ही पिता से नज़र बचाकर खेलते रहेंगे.. और वो.. छज्जे से खड़े हमें देखते रहेंगे.. मुस्कुराते रहेंगे। माता-पिता से जुड़े निजी अनुभवों में एक सार्वभौमिक बात मुझे दिखती है.. वो ये कि हर बच्चा लकीर का अमीर है… माता-पिता उम्मीद की चमकीली लकीरें खींच खींचकर पहुँचाते हैं बच्चे तक… और बच्चा…उन लकीरों को डोर बनाकर पतंग उड़ाता है। मैं लकीर का अमीर हूँ... स्वप्न मेरे… वात्सल्य की लकीरों से बंधकर भी… उड़ान में रहते हैं मेरे जीवन के कमांडो ट्रेनर, कवि और सदाबहार संपादक… हमारे पापा जी को जन्मदिन की बधाई। मानव जी (Vijay Kishore Manav) का एक ऐसा श्रोता जो स्वयं उनकी ही रचना है..   **मेरे जन्मदिन (21-09-2024) पर पापा जी ने मेरे लिए पहली बार कुछ ऐसा लिखा** > मेरे सुपुत्र सिद्धार्थ त्रिपाठी आज और बड़े हो गए। आज उनका जन्मदिन है । उन्हें आपकी भी शुभकामनाएँ चाहिए। वह कई मायनों में अपनी उम्र से बड़े पहले से ही हैं। उनकी जानकारियों का फ़लक अत्यंत विस्तृत है। उनका ज्ञान और इनसाइट कुछ ऐसा है कि अक्सर मुझे अपने आप को सही करने के लिए उनकी मदद लेनी पड़ती है। बहस में उनसे जीतना मुश्किल होता है । कई बार तो यह अच्छा भी लगता है । उन्होंने मेरे ही पेशे को चुना और दो दशकों से अधिक समय से वहाँ हैं। उन्होंने क़द काठी के साथ पेशे में भी ऊँचाई हासिल की है। पैसा हाथ का मैल है—इस कहावत को साकार करने वाले सिद्धार्थ मेरे और अपनी माँ के लिए ऐसी चीज़ें ले आते हैं जो हमारे दायरे से बाहर की ही होती हैं। > > वह अपनी बिल्कुल अलग शब्दावली और असाधारण प्रयोगों वाली भाषा से क़रीब-क़रीब खेलते हैं, यह मुझे बहुत भाता है। उनकी कविताओं को कभी पढ़ने का अवसर मिले तो मेरी ही तरह आप भी कहेंगे कि ऐसी कविताएँ मैंने नहीं पढ़ीं। मेरे सारे संग्रहों की कविताएँ जैसे मेरे चिरंजीव की ज़बान पर रहती हैं, जहां भूलता हूँ वहाँ से आगे का हिस्सा बोलने लगते हैं। मैं कभी ही उनकी प्रशंसा करता हूँ। सामने तो आज भी नहीं की, बस लिख दिया। > ईश्वर उन्हें अच्छा स्वास्थ्य, लम्बी उम्र और सपने तथा उन्हें पूरा करने वाली लम्बी यात्रा दे। उदार और अच्छा मन इस यात्रा में उनके साथ रहे । > बहुत सारे आशीर्वाद!