## दुख भी नमकीन होता है #Faces तुम्हारे साथ मेरी पारी.. अब भी जारी है.. और रहेगी... हमने चमकीली यादों और अनुभवों का बड़ा स्कोर बना लिया है। 10 वर्ष पुरानी बैट और हेलमेट वाली तस्वीर में मुझे तुम्हारे ठहाके सुनाई दे रहे हैं ![[Pub-Rohit-Siddharth.webp|400]] कोई पूछेगा कि तस्वीरों में ध्वनि कहां से सुनाई दे रही है आपको ? तो कह दूंगा... स्मरण भी साक्षात्कार है... ये एक ऐसी 3D(त्रिआयामी) व्यवस्था है जिसमें सब कुछ महसूस होता है, और संवेदनशील मनुष्यों को ये मुफ्त में उपलब्ध है। रोहित को हम इसी व्यवस्था के तहत अपने नज़दीक महसूस करते हैं। वैसे इसी से जुड़ा सवाल ये भी है हम किसी के सबसे नज़दीक कब होते हैं ? शायद तब जब वो हमें समझ लेता है और हम उसे। समझना, समझ लेना, समझ जाना.. उसका नैसर्गिक गुण रहा... शायद इसीलिए हर मौके पर वो कौंध जाता है अपनी उसी चिरपरिचित आवाज़ के साथ, और उसी पल अचानक ये याद आता है कि वो नहीं है, कोई बर्तन सा टूटता है मन में.. फिर यादों के पिघले हुए सोने से, हम उस बर्तन को जोड़ते हैं... ठीक वैसे ही जैसे जापान में किंत्सुगी ( Kintsugi ) कला के तहत सोने से टूटे बर्तन जोड़े जाते हैं। ऐसा करने पर दरार और टूटन न सिर्फ दिखती है बल्कि चमकती है। हमारा रोहित भी चमक रहा है, हमारे ही अंदर। होम्योपैथी में गहरे दुख की दवा नैट्रम म्योर है.. यानी नमक ! शायद दुख नमक की अधिकता पैदा करता हो तो क्या जिनमें गहरे दुख रहते हैं...देर तक बहते हैं, उनमें नमक ज़्यादा होता है ? क्या आपके दुख में नमक है ? दुख जितना पुराना होता जाता है क्या उतना ही नमकीन होता जाता है ? मीठे के ज़बरदस्त शौकीन रोहित का दुख क्या वाकई नमकीन होगा ? ऐसे तमाम सवालों के बीच रोहित की पसंद वाले आटे के सौंफ-युक्त बिस्किट खा लिए गए हैं आज की चाय अपने मित्र, सखा रोहित सरदाना के साथ पी ली गई है, उसका जन्मदिन है आज... 21-22... कैलेंडर में हम दोनों के जन्मदिन एक दूसरे से पीठ टिकाकर बैठे हैं, बिल्कुल हमारी तरह, पीठ से पीठ लगाकर टिके रोहित को देख नहीं सकते, बस महसूस कर सकते हैं ❤️💚💙 --- अतिरिक्त संदर्भ : [[Golden Repair]] किंत्सुगी ( Kintsugi ) : टूटे बर्तनों को पिघले सोने से जोड़ने की ये कला जापानी दर्शन मुशिन से प्रभावित है, जिसमें मोह और लगाव से दूर रहने, बदलाव को स्वीकार करने और नुकसान को छुपाने के बजाए सजाने पर ज़ोर दिया गया है। इसे No Mind या और सामान्य भाषा में Don’t Mind कहा जाता है.. जिसे हम बोलचाल में इस्तेमाल भी करते हैं। इंसान हो या बर्तन.. टूटने पर निखारने की कला दोनों के लिए एक जैसी है 2024-09-22