## ख़ुद को कोड़े मारने की तकनीक और इतिहास
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27 दिसंबर 2024 के दिन कोयंबटूर से तस्वीरें आई जिनमें तमिलनाडु BJP के प्रेसिडेंट.. के अन्नामलाई अपने घर के बाहर ख़ुद को कोड़े मार रहे हैं... ये अन्ना यूनिवर्सिटी की एक आपराधिक घटना पर पुलिस की आलोचना करने और उसे आईना दिखाने का उनका तरीका है।
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अगर इनकी तकनीक सही हो और इन्होंने प्रशिक्षण लिया हो तो कोड़े मारने पर भी इन्हें चोट नहीं लगेगी !
खुद को कोड़े मारने की परंपरा आदिवासी और सांस्कृतिक समूहों से आई है, ये न केवल धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व रखती है, बल्कि साहस, आत्म शुद्धिकरण और आत्म-नियंत्रण का प्रतीक भी मानी गई है।
##### कोड़ा बनाने के तरीके और तकनीक
आमतौर पर कोड़े को बनाने के लिए मजबूत और लचीले पेड़ों की छाल जैसे नीम, बबूल या पलाश का उपयोग किया जाता है। लचीली बेलों का उपयोग किया जाता है। इन्हें लंबे समय तक पानी में भिगोकर लचीला बनाया जाता है। बांस के पतले और हल्के हिस्सों का उपयोग भी किया जाता है। इसकी लंबाई आमतौर पर 3-5 फीट होती है। ये लंबाई इसे सही तरीके से चलाने और चोट से बचाने में मदद करती है।
कोड़े को अक्सर रंगीन धागों या कपड़ों से सजाया जाता है। कुछ समुदाय इसमें घुंघरू या छोटे लोहे के टुकड़े बांधते हैं, जिससे ध्वनि उत्पन्न होती है और इसे सांस्कृतिक अनुष्ठान में अधिक प्रभावशाली बनाती है।
कोड़े को चिकना और लचीला बनाने के लिए सरसों या नारियल के तेल का उपयोग किया जाता है। ये कोड़े को टूटने से बचाता है और उपयोग करने वाले की त्वचा पर गहरे घाव होने से रोकता है।
कोड़े को हवा में घुमाकर त्वचा पर हल्के प्रहार किए जाते हैं। ये मारने वाले के अनुभव और नियंत्रण पर निर्भर करता है। केवल कोड़े का सिरा त्वचा को छूता है, जिससे चोट गहरी नहीं होती।
कोड़े के प्रहारों के बीच थोड़ा अंतराल भी रखा जाता है.. ताकि शरीर के जिस हिस्से पर कोड़ा पड़ा है.. वहां खून का बहाव सामान्य हो जाए।
अब ये रिसर्च का विषय है कि अन्नामलाई.. खुद को कोड़े मारने में एक्सपर्ट हैं या नहीं..? वो खुद को चोट से बचा पा रहे हैं या खुद चोट खा रहे हैं ?
##### परंपराओं और इतिहास में कोड़े का प्रयोग
भारत में मध्य प्रदेश, राजस्थान, और गुजरात के आदिवासी समुदायों में त्योहारों के दौरान खुद को कोड़े मारने की प्रथा है। तमिलनाडु और श्रीलंका में मनाए जाने वाले थाईपूसम त्योहार में भक्त अपने शरीर को चोट पहुँचाकर भगवान मुरुगन के प्रति भक्ति दिखाते हैं।
प्राचीन दंड व्यवस्थाओं और प्रथाओं में भी कोड़े मारने का ज़िक्र मिलता है।
- मौर्य और गुप्त साम्राज्य के समय कोड़े मारना अपराधियों को दंड देने का एक तरीका था।
- “अर्थशास्त्र” में चाणक्य ने दंड की इस विधि का उल्लेख किया है।
- प्राचीन रोम और ग्रीस में भी अपराधियों को दंड देने के लिए कोड़े का उपयोग किया जाता था।
- मध्यकालीन यूरोप में, प्लेग महामारी के दौरान, लोग आत्म-शुद्धि और ईश्वर से क्षमा मांगने के लिए खुद को कोड़े मारते थे।
- शिया मुस्लिमों में मुहर्रम के दौरान इमाम हुसैन की याद में जंजीरों और कोड़ों से खुद को मारने की परंपरा है।
- फिलीपींस में ईस्टर के दौरान लोग ईसा मसीह की पीड़ा को महसूस करने के लिए खुद को कोड़े मारते हैं।
- कुछ अफ्रीकी समुदायों में वयस्क होने पर कोड़े मारकर खुद को बड़ा दिखाने और साहस का प्रदर्शन करने की परंपरा रही है।
वैसे सियासी मायनों में.. [के अन्नामलाई भी कोड़े मारकर ख़ुद को बड़ा करना चाहते हैं ](https://x.com/PTI_News/status/1872506692292030781/video/1)