## The MurdaKhor Heist
#Faces
24 मई 2024 को एक फ़िल्म रिलीज़ हुई जिसका नाम है Barah by Barah
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इस फ़िल्म के ट्रेलर को देखकर मुझे हैरानी हुई और निर्माता-निर्देशक-लेखक की वैचारिक कंगाली और धूर्तता पर तरस भी आया। इस फ़िल्म का प्लॉट और कई डीटेल सीधे सीधे मेरे पिता श्री विजय किशोर मानव की एक कहानी मुर्दाखोर से उठा लिए गए हैं। वो भी बहुत बेशर्मी के साथ, बिना नाम लिए, चुपचाप...
मुर्दाखोर अस्सी के दशक की शुरुआत में सारिका में छपी थी, हिंदी कहानी कोष में शामिल की गई थी और साहित्यिक गोष्ठियों में इसकी चर्चा हुई थी यानी साहित्य जगत में उस दौर की चर्चित कहानी थी। इस कहानी का केंद्रीय पात्र एक फ़ोटोग्राफ़र था जो श्मशान घाट पर लाशों की तस्वीरें खींचा करता था और ऐसा करते करते उसकी मानसिकता एक मुर्दाखोर की हो गई थी। मुर्दों में उसे मुनाफ़े की संभावनाएँ दिखती थीं।
मुझे नहीं पता था कि भविष्य में एक दिन मुर्दाखोर की चोरी कोई कहानीखोर कर लेगा। अच्छा होता कि अनुमति लेकर, क्रेडिट देकर, कहानी का इस्तेमाल किया जाता, वैसे इन दिनों इस सामान्य से शिष्टाचार का भी चलन नहीं है।
कुछ लोग किसी के जीवन भर के श्रम, साधना, अनुभव से लेकर बातचीत के लहज़े तक...कुछ भी चोरी कर लेते हैं और इस चोरी को जन्मसिद्ध अधिकार समझते हैं। कालांतर में जब ऐसे चोरों का आकार बढ़ता है तो वे अपनी ज़िंदगी की फ़िल्म के मोगैम्बो, शाकाल.. आदि बनते हैं.. और अट्टहास करते हैं.. परंतु एक अंगुली उठाते ही दुबक जाते हैं अपनी चुप्पी में..अपने कुतर्कों में...
ख़ैर इस एपिसोड को झेलने के बाद मेरे प्रिय कवियों में से एक आशुतोष दुबे जी की ये पंक्तियाँ कौंधीं...
> चोर हमेशा अपना चोर होना ही
> ले जा पाता है
> जहाँ भी जाए
> जहाँ से भी जाए
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मुर्दाखोर की PDF फाइल यहां अटैच कर दी है, समय निकालकर पढ़ सकते हैं
[[Murdakhor-Story by VK Manav.pdf]]
2024-05-29