## सदाबहार युवा… स्वामी विवेकानंद ट्रेंडिंग हैं #LearningLounge हम भारत के लोग सदाबहार अभिनेताओं के फ़ैन रहे ,‘आनंद’ लिया आज उसी तर्ज़ पर सदाबहार युवा स्वामी विवेकानंद और उनकी भारत ऊर्जा की बात हो रही है। क्या आप इस तस्वीर में स्वामी विवेकानंद को पहचान सकते हैं ? उनके सुदर्शन व्यक्तित्व को भीड़ में भी पहचाना जा सकता है। ![[Pub-Vivekanand-center.webp]] अपने जन्म के 160 साल से ज़्यादा गुज़र जाने के बाद भी विवेकानंद ट्रेंडिंग हैं, उनके विचार वायरल हैं। स्वामी विवेकानंद आज होते तो सबसे पावरफुल, विचारोत्तेजक Reels बनाते। वो दौर जब लोग इंसान नहीं, इंस्टाग्राम देखते हैं, उसमें विवेकानंद कुछ मसलों पर एक पथ प्रदर्शक हो सकते हैं ##### बड़े और बोल्ड फैसले लेने की क्षमता >“अपने जीवन में जोखिम उठाओ, अगर तुम जीतोगे तो नेतृत्व करोगे और अगर हारोगे तो लोगों का मार्गदर्शन करोगे” ##### खेती और शिक्षा नीति >“किसानों की समस्या का समाधान शिक्षा के जरिए किया जा सकता है। शिक्षा का मतलब यह नहीं है कि दिमाग में सिर्फ ऐसी सूचनाएं जमा कर ली जाएं जिनका जीवन में कोई उपयोग ही नहीं है। शिक्षा का मकसद जीवन निर्माण, व्यक्ति निर्माण और चरित्र निर्माण होना चाहिए” ##### महिलाएं >“किसी भी देश की प्रगति का सबसे बेहतर पैमाना ये है कि वो देश अपनी महिलाओं के साथ कैसा व्यवहार करता है ? महिलाओं की स्थिति सुधारे बिना, दुनिया के आगे बढ़ने की कोई संभावना नहीं है” ##### युवा जिस दौर में स्वामी विवेकानंद अपने जीवन के शिखर पर थे। उस दौर में भारत, अंग्रेज़ों का गुलाम था ऐसे समय में युवाओं के लिए उनके सूत्र ये थे >“उठो… जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए “ >“तुम जो सोच रहे हो, उसे अपनी ज़िंदगी का विचार बनाओ । उसके बारे में सोचो । उसके लिए सपने देखो । उस विचार के साथ जिओ… तुम्हारे दिमाग में, तुम्हारी मांसपेशियों में, तुम्हारी नसों में और तुम्हारे शरीर के हर हिस्से में वो विचार भरा होना चाहिए। यही सफलता का सूत्र है।” >“सभी शक्तियां तुम्हारे अंदर हैं । तुम कुछ भी कर सकते हो और सब कुछ कर सकते हो । इस बात पर विश्वास करो, भरोसा करो कि तुम कमज़ोर नहीं हो। ##### गरीबी >“सिर्फ मशीनों से गरीबी की समस्या को खत्म नहीं किया जा सकता जब तक करोड़ों लोग भूखे रहेंगे तब तक मैं हर उस आदमी को दोषी मानूंगा जिसने शिक्षा तो हासिल कर ली लेकिन, गरीबों की चिंता बिल्कुल नहीं की” ##### धार्मिक सहनशीलता और कट्टरता का विरोध 11 से 27 सितंबर 1893 के बीच अमेरिका के शिकागो में विश्व धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद ने 6 भाषण दिए, सांप्रदायिकता और कट्टरता के खिलाफ उनकी बातों ने दुनिया का ध्यान खींचा था। पहले भाषण की शुरुआत में उन्होंने कहा था – “Sisters And Brothers Of America” और उनके इन शब्दों को सुनकर वहां मौजूद 7 हज़ार लोगों ने करीब 2 मिनट तक स्वामी विवेकानंद के लिए खड़े होकर तालियां बजाई थीं। > आपके द्वारा दिए गए इस स्नेहपूर्ण और गर्मजोशी भरे स्वागत का उत्तर देते हुए मेरे हृदय को असीम आनंद हो रहा है। > मैं आपको लाखों-करोड़ों हिंदू लोगों की ओर से धन्यवाद देता हूं, जो विभिन्न वर्गों और संप्रदायों से हैं। > मुझे गर्व है कि मैं उस धर्म से संबंध रखता हूं जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ पढ़ाया। हम न केवल सार्वभौमिक सहिष्णुता में विश्वास करते हैं, बल्कि सभी धर्मों को सत्य मानते हैं। मुझे गर्व है कि मैं उस राष्ट्र से हूं जिसने इस धरती के सभी धर्मों और देशों के सताए गए और शरणार्थियों को आश्रय दिया। > मैं आपको एक प्राचीन प्रार्थना की कुछ पंक्तियां सुनाना चाहूंगा, जो मैंने अपने बचपन से दोहराई हैं, और जिसे हर दिन लाखों लोग दोहराते हैं > **“जैसे विभिन्न स्थानों से निकली नदियां समुद्र में जाकर मिलती हैं, वैसे ही, हे प्रभु, मनुष्यों द्वारा अपनाए गए विभिन्न मार्ग, चाहे वे कितने भी भिन्न, टेढ़े या सीधे हों, सभी तुम्हारी ओर ही आते हैं।”** > यह सम्मेलन, जो अब तक आयोजित सबसे महान सभाओं में से एक है, अपने आप में उस सिद्धांत का समर्थन करता है जिसे गीता में प्रचारित किया गया है > **“जो कोई भी किसी भी रूप से मेरी ओर आता है, मैं उसे स्वीकार करता हूं; सभी मनुष्य विभिन्न मार्गों से संघर्ष करते हुए अंत में मुझ तक पहुंचते हैं।”** > सांप्रदायिकता, कट्टरता, और उसका भयानक वंशज, धार्मिक उन्माद, लंबे समय से इस सुंदर पृथ्वी पर अपना प्रभुत्व जमाए हुए हैं। उन्होंने पृथ्वी को हिंसा से भर दिया है, इसे बार-बार मानव रक्त में डुबो दिया है, सभ्यता को नष्ट कर दिया है, और पूरे राष्ट्रों को निराशा में धकेल दिया है। यदि ये भयानक राक्षस नहीं होते, तो मानव समाज अब तक कहीं अधिक उन्नत होता। लेकिन अब उनका समय समाप्त हो चुका है।   इसी दौरान 15 सितंबर 1893 को समुद्र वाले मेंढक और कुएँ के मेंढक की कथा सुनाकर उन्होंने धर्मों के बीच मतांतर और श्रेष्ठता की लड़ाई को रेखांकित किया था > “मैं आपको एक छोटी सी कहानी सुनाऊंगा। आपने अभी जो वक्ता का भाषण सुना, उन्होंने कहा, ‘आओ, एक-दूसरे को गाली देना बंद करें,’ और उन्होंने इस बात पर खेद व्यक्त किया कि हमेशा इतना मतभेद क्यों होता है। लेकिन मैं एक कहानी बताना चाहता हूं जो इस मतभेद का कारण स्पष्ट करेगी। > > एक मेंढक कुएं में रहता था। वह वहां लंबे समय तक रहा। वहीं पैदा हुआ और बड़ा हुआ। यह एक छोटा, सामान्य मेंढक था। किसी दिन समुद्र में रहने वाला एक और मेंढक उस कुएं में गिर गया। > “तुम कहां से आए हो?” > “मैं समुद्र से आया हूं।” > “समुद्र! वह कितना बड़ा है? क्या यह मेरे कुएं जितना बड़ा है?” > समुद्र वाले मेंढक ने कहा, “तुम समुद्र की तुलना अपने छोटे से कुएं से कैसे कर सकते हो?” > कुएं वाले मेंढक ने जवाब दिया, “कुछ भी मेरे कुएं से बड़ा नहीं हो सकता; यह झूठ बोल रहा है। इसे बाहर निकाल दो।” > यही समस्या हमेशा से रही है। > मैं एक हिंदू हूं। मैं अपने छोटे कुएं में बैठा हूं और सोचता हूं कि पूरी दुनिया यही है। ईसाई भी यही सोचते हैं, और मुसलमान भी। लेकिन हमें इस कुएं से बाहर निकलना होगा और सबकी सच्चाई समझनी होगी।”   शिकागो की धर्म संसद में 19 सितंबर 1893 को हिंदू धर्म पर उन्होंने एक पेपर भी पढ़ा था। जिसमें वेदांत दर्शन और विज्ञान की आधुनिक खोजों के बीच के संबंध को रेखांकित करने की कोशिश थी > हिंदुओं ने अपना धर्म वेदों के माध्यम से प्राप्त किया है। वे मानते हैं कि वेदों का न तो कोई प्रारंभ है और न ही कोई अंत। यह बात इस श्रोता वर्ग को अजीब लग सकती है कि कोई ग्रंथ प्रारंभ और अंत से परे कैसे हो सकता है। लेकिन वेदों से तात्पर्य किसी किताब से नहीं है। वेद उन आध्यात्मिक नियमों के संचित खजाने का प्रतीक हैं, जिन्हें विभिन्न समयों में अलग-अलग लोगों द्वारा खोजा गया। जैसे गुरुत्वाकर्षण का नियम उसकी खोज से पहले भी मौजूद था और यदि पूरी मानवता इसे भूल भी जाए, तो भी वह अस्तित्व में रहेगा, ठीक वैसे ही आध्यात्मिक दुनिया को संचालित करने वाले नियमों का भी यही सत्य है। > इन नियमों के खोजकर्ता “ऋषि” कहलाते हैं, और हम उन्हें सिद्ध पुरुष और स्त्रियों के रूप में सम्मानित करते हैं। मुझे यह बताते हुए गर्व हो रहा है कि उन महान खोजकर्ताओं में कुछ महिलाएं भी थीं। वेद हमें यह सिखाते हैं कि सृष्टि का न कोई आरंभ है और न कोई अंत। ऐसा समय कभी नहीं था जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था।   रील बनाते हुए, सेल्फ़ी लेते हुए, सोशल मीडिया पर अंगूठा फिराते हुए बीच बीच में समय निकालकर ये भी भाषण पढ़ लेने चाहिएँ आपको लगेगा कि विवेकानंद बहुत पीछे नहीं छूटे। ==वैसे अंगूठा फ़िराने से याद आया कि एक बार मशहूर हस्तरेखाविद् कीरो ने स्वामी विवेकानंद के हाथ की छाप दर्ज की थी जो एक पुस्तक में भी छपी थी।मुझे रिसर्च के दौरान मिली।== ![[Pub-Vivekanand-hand.webp|400]] सिर्फ 39 साल की उम्र तक सशरीर जीवित रहने वाले व्यक्ति की बौद्धिक संपदा कितनी विशाल थी। उसने भारत ही नहीं, दुनिया में अपनी तरफ़ से कितनी सकारात्मक बातें जोड़ीं, Youth Icon इसे कहते हैं, आधुनिक दौर के युवाओं को विवेकानंद बनने से ज़्यादा संवेदनशील और उदार होने की ज़रूरत है, वो अपने तरीक़े से, अपने अर्थों में आधुनिक विवेकानंद बन सकते हैं, गौर से देखेंगे तो पाएँगे कि हर मन एक मठ हो सकता है, हर युवा देश के लिए नया विवेकानंद बन सकता है। ![[Pub-Vivekanand-2.webp|400]] 2023-01-12 (स्वामी विवेकानंद के जन्म के 160 साल बाद 12 जनवरी की तारीख़)